अगर सच हो गयी मेरी दुआ तो
अचानक वो कहीं मिल ही गया तो
पलटने की इजाज़त तो नहीं है ,
मगर देने लगा कोई सदा तो
वो ख़ुद भी देर तक रोता रहेगा
अगर उसने मुझे रोने दिया तो
यही है ज़िन्दगी भर का असासा
अगर ये ज़ख़्म भी भरने लगा तो
तसव्वुर से लरज़ जाता हूँ जिसके
अगर उसको किसी दिन देखता तो
मुझे मालूम हैं आदाब ए उल्फ़त
मगर हो ही गयी कोई ख़ता तो
मुदावा तो नहीं मुमकिन था कोई
मगर वो हाल मेरा पूछता तो
बहुत कुछ कह रही थीं उसकी आँखें
ज़ुबाँ से भी मगर कुछ बोलता तो
वो जिनके ज़िक्र से नम हो गया हूँ
अगर उन बारिशों में भीगता तो
मनीष शुक्ल