Monday 13 May 2013

इक ख़्वाब छन से टूटके   आँखों में गड़ गया .
इतना हँसे  कि  चीख़के  रोना  भी  पड़  गया .

ये  किसने  अपनी  टीस  वरक़  पर उतार दी ,
ये कौन अपने दिल को सियाही से  जड़ गया .

अब तो  ख़याल  ए यार  से होता है ख़ौफ़  सा ,
चेहरा किसी की याद का कितना बिगड़ गया .

लहरों  का  शोर  थम  गया,  तूफ़ान  सो  गए,
कश्ती  के   डूबते  ही   समन्दर  उजड़   गया .

जब  तक  हमारे  नाम से वाक़िफ़ हुआ  जहाँ ,
तब  तक  हमारे  नाम  का  पत्थर उखड़ गया .

कर  तो  लिया  है  दर्द  की  लहरों का सामना ,
लेकिन  हमारे  ज़र्फ़  का  बख़िया  उधड़  गया .

उसको  ठहर  के  देखते  हसरत  ही  रह  गयी ,
वो  दफ़्फ़तन  मिला  था अचानक बिछड़ गया .
मनीष शुक्ल