" लखनऊ "
वो शहर ए बाग़ ओ गुलसितां ,
वो खानकाह ए दिलबरां,
जो अक्स था बहार का,
अलम्बरीं था प्यार का ,
दयार वो बहिश्त सा ,
उरूज वो निगार का ,
कहाँ गया ,कहाँ गया ? ,
वो कारवां बहार का ,.....
थीं जिसकी शामें खुशनुमा ,
थे जिसके रोज़ ओ शब ज़िया ,
फिज़ा भी खुशगवार थी ,
ज़मीन लालाज़ार थी ,
सुकून का दयार था,
सभी का ग़मगुसार था,
कहाँ गया ,कहाँ गया ?,
वो कारवां बहार का .........
हवा में इक नशा सा था ,
मिज़ाज कुछ जुदा सा था ,
दिलों में ऐतबार था ,
ख़ुलूस था क़रार था ,
ख़ुदा का एक
मोजिज़ा ,
था जिसपे हर बशर फ़िदा ,
कहाँ गया ,कहाँ गया ?,
वो कारवां बहार का .......
नहीं थीं ऐसी वहशतें ,
क़दम क़दम पे नफ़रतें ,
कहाँ अवध की शाम वो ,
कहाँ ये शहर ए नौ की ज़ौ ,
कि ज़ार ज़ार रो रहा ,
चराग़ ये बुझा हुआ ,
कहाँ गया ,कहाँ गया ?
वो कारवां बहार का ........
ये तेज़ रफ़्त गाड़ियाँ ,
ये माल ओ ज़र की आंधियां ,
ये बदहवास रतजगे ,
ये लाशऊर क़हक़हे ,
कहाँ गया ए दिल बता ,
वो महफ़िलों का सिलसिला ,
कहाँ गया ,कहाँ गया ?,
वो कारवां बहार का ..........
लुटी हुई ये इस्मतें ,
ये तार तार अज़्मतें ,
ये शोर ओ ग़ुल की बस्तियां ,
ये मुज़्तरिब जवानियाँ ,
कहेगा कौन अब भला ,
ये अम्न का मक़ाम था ,
कहाँ गया, कहाँ गया ?,
वो कारवां बहार का ........
कहाँ वो खुशगवारियां ,
कहाँ ये बेक़रारियां ,
जो शहर था वफ़ाओं का ,
हसीन धूप छाँव का ,
वो
रफ़्ता रफ़्ता खो गया ,
ये कैसा हादसा हुआ ?,
कहाँ गया ,कहाँ गया ?
वो कारवां बहार का ........
यहाँ थे "दोस्त बावफ़ा" ,
"मुहब्बतों से आशना”
वो अहल ए दिल की सरज़मीं,
"कली कली थी नाज़नीं" ,
न जाने कैसे हो गया ,
ये शहर ए लुत्फ़ बदमज़ा ,
कहाँ गया ,कहाँ गया ?,
वो कारवां बहार का .........
ये दिल बहुत उदास है ,
फ़िज़ा में रंग ए यास है ,
नहीं नहीं ए महजबीं ,
ये शहर वो शहर नहीं ,
कि जिसपे हमको नाज़ था ,
हसीं नगर वो ख़्वाब सा ,
कहाँ गया ,कहाँ गया ?
वो कारवां बहार का ......
ज़रा नज़र उठाइए ,
हुज़ूर कुछ बताईये ,
वो शहर खो गया कहाँ ,
वो सरज़मीन ओ आस्मां ,
कि अब भी जिसका जा ब जा,
करें हैं लोग तबसरा ,
कहाँ गया ,कहाँ गया ?,
वो कारवां बहार का ..........
वो
शाम ए खुल्द लाईए ,
वो बज़्म फिर सजाइए ,
थी जिसपे रूह आफ़रीं ,
वो "लखनऊ की सरज़मीं" ,
वो जिससे हम थे आशना ,
वो हमनसब वो हमनवा ,
कहाँ गया ,कहाँ गया ?
वो कारवां बहार का ,
दयार वो बहिश्त सा ,
उरूज वो निगार का ,
कहाँ गया कहाँ गया ............मनीष शुक्ल