Monday 22 June 2015




   ग़ज़ल 

   
मुहब्बत   की   फ़रावानी    मुबारक। 
तुम्हें  आँखों  की तुग़यानी  मुबारक। 

तुम्हारा    चाँद   पूरा    हो   गया   है ,
तुम्हें   ठहरा    हुआ  पानी   मुबारक।

उतर  आया   है  दिल   में   नूर  कोई ,
तुम्हें   चेहरे   की   ताबानी  मुबारक। 

किसी पर  फिर  यक़ीं  करने  लगे हो ,
तुम्हें  फिर  से   ये  नादानी  मुबारक। 

तुम  अपनी  बात   कहना  जानते हो ,
तुम्हें लफ़्ज़ों   की  आसानी  मुबारक। 

तुम्हें ये शोर ओ ग़ुल नैरंग ए दुनिया ,
हमें   सहरा   की    वीरानी   मुबारक। 

कोई    सूरत    मुरत्तब    हो   रही    है,
ख़यालों    की     परेशानी    मुबारक। 

मनीष शुक्ला 

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