Thursday, 29 August 2013



बस  अपने  साथ रहने  में  ख़ुशी  मालूम  होती  है।
तिरी    फ़ुर्क़त   में  तनहाई   भली  मालूम होती है।

कई दिन से मिरी आँखों में  इक आंसू  नहीं  आया ,
मगर  फिर   भी न जाने क्यूँ  नमी मालूम होती है।

तुम्हारे दर्द का क़िस्सा  मिरे क़िस्से से मिलता  है ,
 तुम्हारी   दास्ताँ   मुझको   मिरी   मालूम  होती है।

फ़क़त हँसता हुआ चेहरा नहीं ज़ामिन मसर्रत का ,
अगर  खुश  हो तो  चेहरे से  ख़ुशी मालूम  होती है।

किसी की ख़ुशबुएँ  वापस पलटकर आ गईं शायद ,
फ़िज़ाओं  में   अचानक  ताज़गी   मालूम  होती है।

मैं  अपने  दर्द  से  अलफ़ाज़   को  मोती बनाता  हूँ ,
मगर   दुनिया  को  ये  जादूगरी   मालूम  होती  है।

फिर उसके बाद पत्थर में बदल जाते हैं तिशनालब ,
कई  दिन  तक तो पहले  तिशनगी  मालूम होती है।
मनीष शुक्ल

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