बस अपने साथ रहने में ख़ुशी मालूम होती है।
तिरी फ़ुर्क़त में तनहाई भली मालूम होती है।
कई दिन से मिरी आँखों में इक आंसू नहीं आया ,
मगर फिर भी न जाने क्यूँ नमी मालूम होती है।
तुम्हारे दर्द का क़िस्सा मिरे क़िस्से से मिलता है ,
तुम्हारी दास्ताँ मुझको मिरी मालूम होती है।
फ़क़त हँसता हुआ चेहरा नहीं ज़ामिन मसर्रत का ,
अगर खुश हो तो चेहरे से ख़ुशी मालूम होती है।
किसी की ख़ुशबुएँ वापस पलटकर आ गईं शायद ,
फ़िज़ाओं में अचानक ताज़गी मालूम होती है।
मैं अपने दर्द से अलफ़ाज़ को मोती बनाता हूँ ,
मगर दुनिया को ये जादूगरी मालूम होती है।
फिर उसके बाद पत्थर में बदल जाते हैं तिशनालब ,
कई दिन तक तो पहले तिशनगी मालूम होती है।
मनीष शुक्ल
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