ग़ज़ल
मुहब्बत की फ़रावानी मुबारक।
तुम्हें आँखों की तुग़यानी मुबारक।
तुम्हारा चाँद पूरा हो गया है ,
तुम्हें ठहरा हुआ पानी मुबारक।
उतर आया है दिल में नूर कोई ,
तुम्हें चेहरे की ताबानी मुबारक।
किसी पर फिर यक़ीं करने लगे हो ,
तुम्हें फिर से ये नादानी मुबारक।
तुम अपनी बात कहना जानते हो ,
तुम्हें लफ़्ज़ों की आसानी मुबारक।
तुम्हें ये शोर ओ ग़ुल नैरंग ए दुनिया ,
हमें सहरा की वीरानी मुबारक।
कोई सूरत मुरत्तब हो रही है,
ख़यालों की परेशानी मुबारक।
मनीष शुक्ला
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