Tuesday, 17 October 2017



कहने  को  रख  रखाव  तिरा बेमिसाल  है। 
लेकिन ये  रख  रखाव ही ख़ुद में सवाल है। 

कैसा   अजीब     रंग    है    तेरे   दयार   का ,
सब  हंस  रहे  हैं  और  लबों  पर  मलाल है। 

मैं  छू रहा हूँ  तुझको  मगर  लम्स  के  बग़ैर ,
कुछ  दिख  नहीं  रहा है ये कैसा विसाल है। 
कैसे  कहूँ   कि  रोज़  अयादत  को  आईये ,
कैसे  कहूँ   कि  आज   तबीयत  बहाल  है। 

मैंने  कहा   कि   चाँद   सितारे   निसार  दूँ ,
उस  ने  कहा  कि  ये  तो पुराना ख़याल है। 

आओ  कि  आज   टूट  के  रोएं तमाम रात ,
हम  तुम  हैं  आस्मां  है  ज़मीं है हिलाल है।

 देखो  कि  एक  क़ाफ़िला  होने  चले हैं हम ,
तन्हा  भी जिस जगह से गुज़ारना मुहाल है।
मनीष शुक्ला 


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