चमन में मिरे अधखिली सी कली ये ,
निगार ए बहाराँ से बहकी हुई है ,
मिरी रूह मेरे घरोंदे की मिटटी ,
तर ओ ताज़ा खुशबु से बहकी हुई है
लहकती चहकती ये अल्हड़ सी गुड़िया ,
थिरकती है आँगन में मुश्क ए हिना सी ,
मिरी मुज़्महिल ज़िन्दगी के बदन से ,
गुज़रती हुई नर्म दस्त ए सबा सी ,
ये मासूम ख़्वाबों में डूबी निगाहें ,
न जाने सितारों में क्या ढूंढ़ती हैं,
हज़ारों सवालात लेकर अजब से ,
ये मुझसे हवा का पता पूछती हैं ,
मैं हैरान होता हूँ अक्सर उलझकर ,
तमन्ना की पगडंडियों के भंवर में ,
हसीं ख़्वाहिशों की नई बारिशों में ,
चमकते थिरकते हुए इस नगर में ,
मगर सोचता हूँ कि कब तक चलेगा ,
कंवारी तमन्नाओं का सिलसिला ये ,
किसी दिन कहीं पर अचानक रुकेगा ,
हसीं क़हक़हों का रवां क़ाफ़िला ये ,
कभी ये कली गुल में तब्दील होगी ,
क़बा ओढ़ लेगी ये संजीदगी की ,
बदन के तग़य्युर से मजबूर होकर ,
पहन लेगी ज़ंजीर पाकीज़गी की ,
किसी दिन इसे भी ये मालूम होगा ,
कि करनी है इसको भी तख़लीक़ कोई ,
गुज़रना है उन दर्द के जंगलों से ,
नहीं जिनसे बढ़के है तारीक कोई ,
गिरेगी मुसलसल सवालों की बिजली ,
बदन में निगाहों के कांटे चुभेंगे ,
बिखर जायेंगे ये हसीं ख़्वाब सारे ,
ये गुड़ियों के मेले तमाशे उठेंगे ,
मगर फिर पुकारेगा इक शाहज़ादा ,
नज़र कुछ नए ख़्वाब बुनने लगेगी ,
किसी दिन चमन से बिछड़ना पड़ेगा ,
किसी दिन उमीदों की डोली उठेगी ,
सजाऊंगा मैं अपने हाथों से इसको ,
किसी मोतबर हाथ में सौंप दूंगा ,
इन आँखों से अश्कों की बरसात होगी ,
मैं तनहा कहीं पर सिसकता रहूंगा ,
मगर फ़ायदा क्या है रंज ओ फ़ुग़ाँ से ,
हर इक फूल की सिर्फ़ क़िस्मत यही है ,
सफ़र ख़ुशबुओं का बढ़ाना है आगे ,
कि इस ज़िन्दगी की रवायत यही है ,
कभी मैंने भी एक सपना बुना था ,
कभी चुनके तिनके सजाया था गुलशन,
कभी इक कली को किसी के चमन से ,
जुदा कर बसाया था अपना नशेमन ,
किसी बाग़बाँ का है इक क़र्ज़ मुझ पर ,
सो मुझको किसी दिन चुकाना पड़ेगा ,
मिरी ज़िन्दगी मेरे सीने की धड़कन ,
तुझे मेरे गुलशन से जाना पड़ेगा ,,,,,
पापा। … खुश रहो हमेशा
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