भटकता कारवां है और मैं हूँ।
तलाश ए राएगां है और मैं हूँ।
बताऊँ क्या तुम्हें हासिल सफ़र का ,
अधूरी दास्तां है और मैं हूँ।
नया कुछ भी नहीं क़िस्से में मेरे ,
वही बोझल समां है और मैं हूँ।
हर इक जानिब तिलस्माती मनाज़िर ,
नज़र का इम्तेहां है और मैं हूँ।
कोई शाहिद नहीं सजदों का मेरे ,
जबीं पर इक निशां है और मैं हूँ।
शिकस्ता बाल ओ पर तकते हैं मुझको ,
फ़सील ए आस्मां है और मैं हूँ।
दुआ मांगूँ कहाँ किस दर पे जाके ,
दयार ए बे अमां है और मैं हूँ।
बहुत धुंधली नज़र आती है दुनिया ,
उमीदों का धुवां है और मैं हूँ।
भटकता हूँ ज़मीं प र सर बरहना ,
फ़लक का सायबां है और मैं हूँ।
मनीष
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