Wednesday, 13 September 2017



रात  को अब  बरी  किया  जाए। 
ख़्वाब  को  मुल्तवी  किया जाए। 

अब  जुनूं  ही   है  आख़िरी  चारा ,
ठीक  है  फिर  वही  किया जाए। 

आख़िरी  वार    रह   गया  बाक़ी ,
आख़िरी   वार   भी   किया  जाए। 

वो  मयस्सर  तो  हो  नहीं सकता ,
कम से कम  याद ही किया जाए। 

ज़ुल्फ़  से  सायबाँ   बना  दो  तुम ,
धूप    को   चांदनी   किया   जाए। 

इक   शरारा  तो  हो  गया  रौशन 
अब  इसे   रौशनी   किया   जाए। 

तुझ को  देखूं तो दिल में आता है ,
कुफ़्र   ताज़िन्दगी    किया   जाए। 

मनीष शुक्ला 


No comments:

Post a Comment