Thursday, 21 September 2017



तू मुझको  सुन रहा  है तो सुनाई क्यूँ  नहीं  देता ।
ये  कुछ  इल्ज़ाम  हैं  मेरे  सफ़ाई  क्यूँ  नहीं देता ।

मिरे  हंसते  हुए  लहजे  से  धोका खा रहे हो तुम ,
मिरा  उतरा  हुआ  चेहरा  दिखाई क्यूँ नहीं  देता ।

नज़र अंदाज़  कर  रखा है दुनिया ने तुझे कब से, 
किसी  दिन अपने होने  की दुहाई क्यूँ नहीं देता ।

मैं तुझको देखने से  किसलिए महरूम  रहता  हूँ,
अता   करता  है  जब नज़रें  रसाई क्यूँ नहीं  देता।

  कई  लम्हे  चुराकर   रख  लिए तूने अलग  मुझसे , 
तू मुझको  ज़िन्दगी भर  की कमाई क्यूँ नहीं देता।

ख़ुद  अपने  आपको  ही घेर कर बैठा है तू कब से
   अब अपने आप से  ख़ुद को  रिहाई  क्यूँ नहीं देता । 

  मैं  तुझको  जीत  जाने   की  मुबारकबाद  देता  हूँ ,
 तू  मुझको  हार  जाने  की  बधाई क्यूँ   नहीं  देता ।
मनीष शुक्ला 

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