सबको उलझन में डाल रखा है।
हमने सिक्का उछाल रखा है।
हमने सिक्का उछाल रखा है।
ख़ुद को इक बार फिर बनाएंगे ,
हमने सब कुछ संभाल रखा है।
हमने हर लब टटोल कर देखा ,
सब पे रंज ओ मलाल रखा है।
हम तहीदस्तियों से वाक़िफ़ हैं ,
हमने ख़ुद को खंगाल रखा है।
चंद चेहरे कमाल होते हैं ,
उसका चेहरा मिसाल रखा है।
हुस्न तो हुस्न उसके चेहरे पर ,
रब ने कैसा जलाल रखा है।
आजकल हमने अपनी महफ़िल से ,
ख़ुद को बाहर निकाल र खा है।
मनीष शुक्ला
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