बहलने लगी है ज़रा सी नमी से।
भरोसा ही उठने लगा तिश्नगी से ,
बहुत बेनियाज़ी दिखाई थी हमने ,
सो वो भी जुदा हो गया बेरुख़ी से।
बहुत दिन का ग़ुस्सा उतारा किसी ने ,
अचानक अलग हो गया ज़िन्दगी से।
तुम्हें हम सुनाते हैं अपनी कहानी ,
मगर इस का चर्चा न करना किसी से।
तुम्हारे लिए ग़म उठाने पड़ेंगे ,
तुम्हें हमने चाहा है अपनी ख़ुशी से।
अब उस के पलटने का इम्कां नहीं है ,
वो उठकर गया है बड़ी बेदिली से।
बहुत बेतकल्लुफ़ न हो पाए हम भी ,
सो वो भी न आगे बढ़ा दिल्लगी से।
हमें आज अपने अँधेरे मिले हैं ,
मुख़ातिब हुए हैं नई रौशनी से।
बस अब याद आने की ज़हमत न करना ,
तुम्हें हम भुलाते हैं लो आज ही से।
मनीष शुक्ला
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