सिर्फ़ बयाबां बचता हम में बिल्कुल जंगल हो जाते।
शेर न कहते तो हम शायद अब तक पागल हो जाते।
हमने वक़्त पे जी भर रो के ख़ुद को ताज़ा दम रखा ,
आंसू अंदर रखे रहते तो हम बोझल हो जाते।
सुनते हैं हम तुमको छूकर ख़ुशबू आने लगती है ,
काश हमारे शाने लगते हम भी संदल हो जाते।
तुम से हमको मिलना ही था हर सूरत हर हालत में ,
तुम परबत बन जाते तो हम जलकर बादल हो जाते।
शुक्र है कुछ मीनारों को तुमने यकलख़्त नहीं ढाया ,
इतनी धूल उड़ी होती सब दरिया दलदल हो जाते।
ख़ालिक़ ने सारा सरमाया डाल दिया इक चेहरे में ,
इतनी रौनक़ से तो दोनों आलम अजमल हो जाते।
काश मिरे मिसरों से बिल्कुल उसकी आँखें बन जातीं ,
काश मिरे अलफ़ाज़ किसी की आँख का काजल हो जाते।
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