हर सलाह दुनिया की दरकिनार की हमने।
ख़्वाब के इशारे पर जां निसार की हमने।
कुछ नहीं हुआ हासिल इस जहाँनवर्दी से ,
बेसबब रिदा अपनी दाग़दार की हमने।
फिर बहल रहे हैं हम आरज़ी खिलौनों से ,
फिर फ़रार की सूरत इख़्तियार की हमने।
चार दिन हंसे बोले हमनवा असीरों से ,
और फिर वही हालत बरक़रार की हमने।
और सबसे तो बोले ख़ुशख़िराम लहजे में ,
बात जब भी की ख़ुद से दिलफ़िगार की हमने।
किस क़दर मुख़ालिफ़ थी अपने अस्ल चेहरे से ,
वो जो शक्ल दुनिया पे आशकार की हमने।
बारहा गिरे आकर ज़िन्दगी के क़दमों पर ,
रूठने की कोशिश तो बार बार की हमने।
मनीष शुक्ला
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