इतनी जल्दी न मान जाया कर।
तू ज़रा बात को बढ़ाया कर।
अब्र है तो ज़रा बरस मुझ पर ,
साएबां है तो सर पे साया कर।
सिर्फ़ चाहत से कुछ नहीं होता,
आसमां सर पे मत उठाया कर।
माना दुनिया ख़राब है लेकिन ,
मुझसे मिलकर तो मुस्कराया कर।
आंधियां आशियाँ उजाड़ेंगी ,
तू मगर आशियाँ बनाया कर।
ग़म के मारों की आह लगती है ,
ग़म के मारों को मत सताया कर।
तेरी बातें अजीब होती हैं ,
मुझको बातों में मत लगाया कर।
मनीष शुक्ला
मनीष शुक्ला
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