ख़ाकबस्ता शिहाब कितने थे !
महव ए सहरा सराब कितने थे ?
कोई ताबीर तक नहीं पहुंचा ,
शब की आँखों में ख़्वाब कितने थे!
ख़ूब रौनक़ थी तेरी महफ़िल में ,
हम से ख़ानाख़राब कितने थे ?
सब सवाली थे माहपारों के ,
मुन्किर ए माहताब कितने थे ?
तेरी आवाज़ पर सदा देते ,
इतने हाज़िर जवाब कितने थे ?
रहरवान ए तरब हज़ारों थे ,
माइल ए इज़्तिराब कितने थे ?
आशिक़ों का हुजूम था लेकिन ,
इश्क़ में कामयाब कितने थे ?
लाख मजनूं थे इस ख़राबे में ,
दश्त को दस्तयाब कितने थे ?
मनीष शुक्ला
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