काम बेकार के किये होते।
काश हम ठीक से जिए होते।
रक़्स करते ख़राबहाली पर ,
अश्क ए ग़म झूम कर पिए होते।
दर्द नाक़ाबिल ए मुदावा था ,
हाँ मगर ज़ख्म तो सिए होते।
दर हक़ीक़त तो ख़्वाब थी दुनिया ,
हम भी ख़्वाबों में जी लिए होते।
एक ख़्वाहिश ही रह गयी दिल में ,
हम तिरे ताक़ के दिए होते।
तू न होता तो इस ख़राबे में ,
सब के होंठों पे मरसिए होते।
बज़्म अपने उरूज पर होती ,
और हम उठ के चल दिए होते।
नामुकम्मल रही ग़ज़ल अपनी ,
काश कुछ और क़ाफ़िए होते।
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