Saturday, 17 June 2017



जाने  किस  रंग  ने  लिखा है मुझे। 
हर   कोई   साफ़   देखता  है  मुझे। 

कोई    बैठा     हुआ    सितारों   में ,
अर्श   की  सिम्त  खेंचता  है मुझे। 

तेरे   होंठों  पे  क्यूँ    नहीं   आता ?
तेरे   चेहरे  पे  जो  दिखा  है  मुझे। 

मैं  जिसे   रास्ता    दिखाता   था ,
ताक़  पर वो ही रख गया है मुझे। 

मैंने   उस   पार   झांकना   चाहा ,
आसमां  साथ   ले  गिरा  है  मुझे। 

मैंने  आँखें  निचोड़   कर  रख  दीं ,
अब  कहाँ  ख़्वाब  सूझता है मुझे। 

हर   सहर     तीरगी   लिए   आए ,
जाने किस शब् की बद्दुआ है मुझे। 

मेरा   सारा   बदन   पसीज   गया ,
भीगी  नज़रों से  क्यूँ छुआ है मुझे। 

एक   चेहरा  ही  हो  गया  मुबहम ,
और  सब  कुछ  तो याद सा है मुझे 

मनीष शुक्ला 

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