Tuesday, 20 June 2017


तुझ   तक  आने  जाने  में  ही टूट गए।
दीवाने    वीराने      में    ही   टूट   गए।

वो    औरों   को  कांधा   देने  वाले   थे ,
अपना   बोझ    उठाने  में  ही  टूट गए।

हम  जो अच्छे फ़नकारों में शामिल थे ,
इक   किरदार  निभाने  में  ही टूट गए।

दुनिया तक फिर जाम भला कैसे लाते ,
मयकश  तो  मैख़ाने  में  ही   टूट   गए।

होंठों तक तो सिर्फ़ तमाज़त ही पहुंची ,
नश्शे   तो   पैमाने   में   ही   टूट   गए।

क्या उनका फिर  हाल तबाही में होता ,
वो  तो   ख़ैर  मनाने  में  ही  टूट   गए।

हमको अपने  साथ  गुज़ारा करना था ,
हम  ख़ुद  को समझाने  में ही टूट गए।
ऊपर   तो  बस  चांदी  सोना ही आया ,
मोती   तो   तहख़ाने  में  ही   टूट  गए।
तुमको  सारी  रात  कहानी कहनी थी ,
तुम  तो   इक अफ़साने में ही टूट गए। 

मनीष शुक्ला 



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