कुछ उदासी शाम की हल्की करो।
आ भी जाओ यार अब जल्दी करो।
पड़ गया फिर से उजालों का अकाल ,
आ के थोड़ी रौशनी जारी करो।
सारी बातें लामुनासिब हैं यहाँ ,
ख़ुद को किस किस बात पे राज़ी करो।
रात के पहलू में रहना है तो फिर ,
रात की फ़रमाइशें पूरी करो।
चाँद से परदा हटाओ अब्र का ,
बेसबब ये रात मत काली करो।
तुमको जल्दी है पहुँचने की मगर ,
मोड़ पर रफ़्तार तो धीमी करो।
बाम ओ दर कितने पुराने हो गए ,
वक़्त है अब तुम ये घर ख़ाली करो।
मनीष शुक्ला
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