Tuesday 26 December 2017



گزاری   عمر   پیالہ  و  مے   بنانے  میں 
 پھر  ہم نے آگ لگا دی شراب  خانے  میں 

خود   اپنے  آپ کو ہم  دیکھ ہی نہیں  پاے 
ہمارا   دھیان   لگا  ہی  رہا    زمانے  میں 

سب اپنے آپ کو ڈھونڈھا کئے بہر صورت 
ہم  اپنی  داستاں  کہتے  رہے  فسانے میں 

تمھاری  یاد  ستاے گی   عمر   بھر  ہم   کو 
ذرا  سا  وقت  لگے گا  تمھیں بھلانے میں 

یوں  ایک  پل  میں زمیندوز مت کرو ہم کو 
ہزاروں  سال  لگے  ہیں  ہمیں  بنانے میں 

خود  اپنے  آپ  کے  کتنا  قریب  آ  پہنچے 
ہم  اپنے  آپ  کو  تیرے  قریب  لانے  میں 

ہماری   تشنہ    دہانی    کا    کارنامہ   ہے 
لگی  ہیں اوس کی بوندیں ندی بنانے میں 

ہماری   داستاں  کتنی  طویل   تھی  دیکھو 
تبھی  تو  دیر  لگائی  تمھیں  سنانے  میں 

منیش شکلا 

Monday 25 December 2017



गुज़ारी  उम्र  पियाला   ओ  मय  बनाने  में। 
फिर हमने  आग  लगा  दी  शराबख़ाने में। 

ख़ुद अपने आप  को हम  देख ही नहीं पाए ,
हमारा  ध्यान  लगा   ही   रहा  ज़माने   में। 

सब  अपने  आप को  ढूंढ़ा किए बहरसूरत ,
हम  अपनी  दास्ताँ  कहते  रहे  फ़साने में। 

तुम्हारी  याद   सताएगी   उम्र  भर  हमको ,
ज़रा   सा  वक़्त   लगेगा   तुम्हें   भुलाने  में। 

यूँ  एक  पल में  ज़मींदोज़  मत करो हमको ,
हज़ारों   साल    लगे   हैं    हमें   बनाने   में। 

ख़ुद अपने आप के कितना क़रीब आ पहुंचे ,
हम  अपने  आप  को  तेरे   क़रीब  लाने  में।

हमारी   तिश्ना   दहानी    का   कारनामा   है ,
लगी   हैं   ओस  की   बूँदें   नदी   बनाने  में। 

हमारी  दास्ताँ   कितनी   तवील   थी  देखो ,
तभी   तो   देर    लगाई    तुम्हें   सुनाने   में। 
मनीष शुक्ला