Tuesday 6 October 2015



 ग़ज़ल 

मुख़ालिफ़ीन   को  हैरान  करने  वाला हूँ। 
मैं  अपनी  हार का  ऐलान करने वाला हूँ। 

सुना   है दश्त  में  वहशत  सुकून पाती है ,
सो   अपने  आपको वीरान करने वाला हूँ। 

फ़िज़ा   में छोड़  रहा हूँ  ख़याल का  ताइर ,
सुकूत  ए  अर्श को  गुंजान करने वाला हूँ। 

गिरा   रहा  हूँ  ख़िरद   की  तमाम  दीवारें 
जुनूँ  का  रास्ता  आसान  करने  वाला हूँ। 

हक़ीक़तों   से  कहो   होशियार   हो   जाएं ,
 मैं अपने ख़्वाब को मीज़ान करने वाला हूँ। 

कोई  ख़ुदा ए मुहब्बत को बाख़बर कर  दे ,
 मैं ख़ुद को इश्क़ में क़ुर्बान करने  वाला हूँ। 

सजा रहा हूँ तबस्सुम का इक नया लश्कर ,
हुजूम  ए यास का नुक़सान करने वाला हूँ। 

मनीष शुक्ला  






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