जब तिरी दास्ताँ सुनाई दी।
तब हमें रौशनी दिखाई दी।
हमने जब भी उदासियाँ लिखीं ,
तेरी पलकों ने रौशनाई दी।
ख़्वाब आँखों में रख लिए तेरे ,
हमने नींदों को मुंह दिखाई दी।
वार जी जान से किया उसने ,
हमने अग़यार को बधाई दी।
दिन में कुछ भी नज़र नहीं आया ,
मेरी आँखों ने रतजगाई दी।
उसका चेहरा दिखा दिया उसको ,
हमने तरक़ीब से सफ़ाई दी।
एक तो दाम में फंसे उस पर ,
हमने सय्याद को बंधाई दी।
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