इतना ज़ियादा ज़िंदा रहना ठीक है क्या।
हरदम यूँ ताबिन्दा रहना ठीक है क्या।
जो होता है होते रहने देते हो ,
क़िस्मत का कारिंदा रहना ठीक है क्या।
क्यूँ बेकार में दर्ज किया अपना क़िस्सा ,
दुनिया में आईन्दा रहना ठीक है क्या।
कितने सारे जंगल रहते हैं हम में ,
बस्ती का बाशिंदा रहना ठीक है क्या
हम मिटटी के पुतले फ़ानी होते हैं ,
हम सब का पाईन्दा रहना ठीक है क्या।
हर्फ़ ओ मआनी मिल कर शोर मचाते हैं ,
लफ़्ज़ों का साज़िन्दा रहना ठीक है क्या।
जो कुछ कर सकते थे कर के देखा था ,
हार के यूँ शर्मिंदा रहना ठीक है क्या।
फिर सब मस्ती का कारन भी पूछेंगे ,
हर लम्हा रक़्सिंदा रहना ठीक है क्या।
चाँद सितारे फीके लगने लगते हैं ,
इस दर्जा रख़शंदा रहना ठीक है क्या।
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