Thursday 28 June 2018




इतना ज़ियादा ज़िंदा रहना ठीक है क्या।
हरदम यूँ ताबिन्दा रहना ठीक है क्या।

जो   होता  है   होते   रहने  देते  हो ,
क़िस्मत का कारिंदा रहना ठीक है क्या।

क्यूँ बेकार में दर्ज किया अपना क़िस्सा ,
दुनिया में आईन्दा रहना ठीक है क्या।

कितने सारे जंगल रहते हैं हम में ,
बस्ती का बाशिंदा रहना ठीक है क्या

हम मिटटी के पुतले फ़ानी  होते हैं ,
हम सब का पाईन्दा  रहना ठीक है क्या।

हर्फ़ ओ मआनी मिल कर शोर मचाते हैं ,
लफ़्ज़ों का साज़िन्दा रहना ठीक है क्या।

जो कुछ कर सकते थे कर के देखा था ,
हार के यूँ शर्मिंदा रहना ठीक है क्या।

फिर सब मस्ती का कारन भी पूछेंगे ,
हर लम्हा रक़्सिंदा रहना ठीक है क्या।

चाँद सितारे फीके लगने लगते हैं ,
इस दर्जा रख़शंदा रहना ठीक है क्या।
 


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