दर्द का कारोबार मुअत्तल हो जाता।
काश मिरा एहसास मुकफ़्फ़ल हो जाता।
सीने में इक तीर मुहल्लल हो जाता ,
दौर ए जुनूं कुछ और मुतव्वल हो जाता।
काश अचानक कोई मुझे भी छू लेता ,
खाक बदन इक बार तो संदल हो जाता।
काश मैं उसके इश्क़ से ग़ाफ़िल ही रहता ,
काश वो मेरे इश्क़ में पागल हो जाता।
तूने इक मिसरे को जितना वक़्त दिया ,
इतने में तो शेर मुकम्मल हो जाता।
काश तुम्हारे ख़्वाब हमारे हो जाते ,
एक अधूरा ख़्वाब मुशक्कल हो जाता।
महफ़िल में अहबाब नहीं आये वरना ,
अच्छा ख़ासा जाम हलाहल हो जाता।
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