Wednesday 27 June 2018



कैसा हंगाम उठाया था कभी।
ख़ुद को जी जान से चाहा था कभी।

ख़ामुशी चीख उठी थी डरकर ,
हमने वो शोर मचाया था कभी।

हम भी हंस हंस के मिले थे सब से ,
हमने भी सोग मनाया था कभी।

वो ही मालिक है हमारा देखो ,
जिसको मेहमान बनाया  कभी।

हमको आता है बिछड़ने का हुनर,
हमने भी साथ निभाया था कभी।

हमने हर बात बता दी सबको ,
हमने हर दाग़ छुपाया था कभी। 

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