Monday 19 September 2011

ankhon dekhi baat hai koi jhoot nahi'n

आँखों  देखी बात है  कोई  झूट  नहीं.
चोट  लगाकर  कहते हैं  तू रूठ  नहीं,.
ख़ुद  ही  भरते  जाते  हैं  गुब्बारे  को.
और  फिर  कहते हैं गुब्बारे फूट  नहीं,.
पत्थर  लेकर  बैठे   हैं   इल्जामों   के.
और  शीशे  से  कहते हैं  तू टूट  नहीं,.
अब की बार उजड़कर बसना मुश्किल है.
दिल की बस्ती को इस दरजा लूट नहीं,.
प्यार  मुहब्बत   की  पेचीदा  राहों  पर.
सच तो चल सकता है लेकिन झूट नहीं,.
दिल  के  पोशीदा  हिस्सों पर चोट करे.
हर  ऐरे  गैरे  को   इतनी  छूट   नहीं,.
अभी  बहुत  से  परदे  उठने  बाकी  हैं.
 मेरी  उम्मीद  अभी  से  टूट  नहीं,.मनीष शुक्ल

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