Friday 16 September 2011

kaghazo'n par muflisi ke morche sar ho gaye



काग़ज़ों  पर  मुफ़लिसी  के  मोर्चे सर हो   गए
और  कहने  के  लिए  हालात   बेहतर हो गए 



प्यास की  शिद्दत के मारों की अज़ीयत देखिये
ख़ुश्क  आँखों  में नदी के ख़्वाब पत्थर हो गए 



ज़र्रा  ज़र्रा खौफ़  में  हैगोशा गोशा  जल रहा
अब के   मौसम  के  न जाने कैसे  तेवर हो गए



सबके सब  सुलझा रहे हैं आसमां की गुत्थियाँ
मसअले  सारे   ज़मीं  के  हाशिये पर  हो  गए


 इक बगूला देर  से  नज़रों  में  है ठहरा हुआ
गुम  कहाँ  जाने  वो सारे सब्ज़  मंज़र  हो  गए


फूल अब करने लगे हैं  ख़ुदकुशी का  फैसला
बाग़ के  हालात  देखो कितने  अबतर हो  गए



हमने तो पास ए अदब  में बंदापरवर कह दिया
और वो समझे  कि सच  में बंदापरवर हों  गए 

मनीष शुक्ल

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