हर इक चेहरा बहुत सहमा हुआ है।
तिरी बस्ती को आख़िर क्या हुआ है ?
बहुत ग़मगीन लौटें हैं परिंदे,
फ़लक पर आज क्या ऐसा हुआ है।
ज़रा सोचो कोई तो बात होगी
कोई रस्ते पे क्यूं बैठा हुआ है,
सुना है रात पूरे चाँद की है,
समंदर शाम से बहका हुआ है।
कभी ठहरी थी थोड़ी देर ख़ुश्बू ,
शजर उस रोज़ से महका हुआ है।
मिरे दिल में कोई मासूम बच्चा,
किसी से आज तक रूठा हुआ है।
ग़ज़ल कहकर सिसकता है अकेले
कोई तक़दीर का मारा हुआ है।
मनीष शुक्ल
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