Monday 12 June 2017



क्या  उसने   कहा  होगा क्या तुमने सुना होगा। 
इस  बार   भी  क़िस्सागो  मायूस  हुआ   होगा। 

कैसा  भी  फ़साना हो  आख़िर तो  फ़साना था ,
कुछ   भूल   गए  होगे  कुछ  याद  रहा   होगा। 

इस  बार भी उजलत  में तुम हमसे  गुज़र आये ,
जो   बाब  ज़रूरी  था  उसे  छोड़  दिया  होगा। 

इस  बार भी  मंज़िल पर  इक टीस  उठी होगी ,
इस  बार  भी   रस्ते  ने  खुशबाश  कहा  होगा। 

 दुनिया  के  मसाएल तो  सुलझे  हैं  न सुलझेंगे ,
 हम  जान  गए   तुमसे  वादा   न  वफ़ा   होगा। 

  गर    ज़ख़्म  कुरेदोगे   कुछ   हाथ   न  आएगा ,
 हम   भूल  चुके  जिसको  वो  दर्द  सिवा  होगा। 

   हम  लोग  बज़ाहिर  तो  सर  ता  पा सलामत हैं ,
  मुमकिन  है  कि  अंदर  से  कुछ टूट गया होगा। 

  इस   बार  भी  मिलने  पर  ख़ामोश  रहेंगे  हम ,
इस  बार  भी रुख़सत पर इक शोर बपा  होगा। 

  इस   बार  भी  सीने  में  हर   बात   छुपा  लेंगे ,
इस  बार भी होंठों पर इक लफ़्ज़ ए दुआ होगा। 
मनीष शुक्ला 




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