Saturday 4 June 2016





एक    कोहराम   सा   हर   वक़्त  उठाए   रखें। 
आप       माहौल       बहरहाल     बनाए    रखें। 

एक  साये   की   तरह   साथ   लगा   रहता   है 
हम   उसे    याद   करें    या   कि    भुलाए  रखें 

 अक़्लमंदी    का   तक़ाज़ा  तो  नहीं  है फिर भी ,
 हमने    सोचा    है    तिरे   साथ   निभाए   रखें। 

  कौन   सुनता  है  यहाँ   किसकी  सदायें  यूँ तो  ,
फिर भी  लाज़िम है  कि  हम शोर मचाए रखें। 

  इन    अंधेरों   पे    कोई   फ़र्क़  नहीं  पड़ने का ,
 अब    चराग़ों   को  बुझा   दें  या  जलाए   रखें। 

   कितना मुश्किल  है  करें  तल्ख़ बयानी उस पर ,
  अपने    होंठों   पे   तबस्सुम   भी   सजाए  रखें। 

 सर्फ़   होना    है   बहरहाल   फ़ना   होना    है ,
  ख़र्च   करते   रहें   ख़ुद    को   कि  बचाए रखें। 
मनीष शुक्ला 

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